रिंग फाइटिंग के लिए मगरमच्छ से ट्रेनिंग ले रहे हैं धर्मेंद्र

जिम या कोच से नहीं, मगरमच्छ से ट्रेनिंग ले रहे बिहार के धर्मेंद्र

नई दिल्ली। बिहार के बगहा से एक ऐसी अनोखी कहानी सामने आई है, जिसे सुनकर आप हैरान रह जाएंगे। सामान्य लोग जिस मगरमच्छ का नाम सुनकर समह जाते हैं, लेकिन एक युवक ऐसा भी है, जो मगरमच्छों के बीच अपना दिन बिताता है। पच्चीस साल का यह युवक धर्मेंद्र कुमार है। युवक खुद को प्रोफेशनल रिंग फाइटिंग के लिए तैयार कर रहा है. लेकिन कोई कोच, जिम या ट्रेनर नहीं हैं, बल्कि उनके सबसे बड़ा गुरु मगरमच्छ है।

धर्मेंद्र रोज सुबह बगहा-1 प्रखंड के छत्रौल गांव से 12 किलोमीटर दूर गोइती क्षेत्र के जंगल-नुमा इलाके में पहुचते हैं। यहां एक जलधारा में करीब 100 से ज्यादा मगरमच्छ धूप सेंकते हुए दिखते हैं। धर्मेंद्र वहां पहुंचते हैं और फिर अजीब पर दिलचस्प ट्रेनिंग लेते हैं। धर्मेंद्र का कहना है कि वे इन मगरमच्छों की चाल, मूवमेंट और हमला करने की तकनीक को बारीकी से देखता है। वे उनके बगल मेंलेटते हैं पुश-अप करते हैं, ध्यान लगाते हैं और फिर उनके मूवमेंट्स की नकल कर उन्हें अपनी फाइटिंग स्टाइल में ढालते हैं। वे कहते हैं, मगरमच्छ न शोर करते हैं, न डरते हैं। उनका हमला अचानक और सटीक होता है। मैं यही सीख रहा हूं।

इंटरनेशनल लेवल पर रिंग फाइटिंग की तैयारी

इस अनोखे प्रयोग को लेकर धर्मेंद्र कहते हैं…मैं चाहता हूं कि एक दिन दुनिया मुझे उस लड़के के तौर पर जाने जो अपनी स्टाइल खुद लेकर आया, जो किताबों या कोच से नहीं, बल्कि मगरमच्छों से सीखी गई थी। वे इंटरनेशनल लेवल पर फाइटिंग करना चाहते हैं, लेकिन अपने तरीके से। इसी वजह से धर्मेंद्र सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहे हैं। वीडियो में वह खुले इलाके में मगरमच्छों के बीच पुश-अप करते, स्ट्रेचिंग करते और उन्हें नजदीक से निहारते दिखाई दे रहे हैं।

धर्मेंद्र के इस वर्कआउट वीडियो को हजारों बार देखा\ जा चुका है। कई यूजर्स इसे दमदार और खतरनाक टैलेंट कह रहे हैं। धर्मेंद्र की यह अनोखी दोस्ती और ट्रेनिंग भले ही हैरान करने वाली है, लेकिन वन विभाग और एक्सपर्ट्स इसे खतरनाक मानते हैं। वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत किसी भी जंगली जानवर के इतना करीब जाना न केवल गैरकानूनी है, बल्कि जानलेवा भी हो सकता है। धर्मेंद्र की कहानी दिलचस्प जरूर है, लेकिन इससे प्रेरित होकर ऐसा करना सही नहीं होगा।

धर्मेन्द्र ने कहा, मगरमच्छ अब मुझे समझने लगे है

जहां देशभर में युवा जिम जाकर या कोच से सीखकर प्रोफेशनल फाइटर बनने की तैयारी करते हैं, लेकिन धर्मेंद्र इस मामले में अपवाद हैं। वे पूरी तरह से नेचर और मगरमच्छों पर निर्भर हैं। उनका कहना है कि मगरमच्छ अब मुझे समझने लगें हैं, जब मैं उनके पास होता हूँ , तो वे आक्रामक नहीं होते है। हमने धीरे-धीरे यह भरोसा बनाया है। धर्मेंद्र स्टेट लेवल पर मार्शल आर्ट मुकाबले जीत चुके हैं, लेकिन अब मैं एक नई फाइटिंग स्टाइल (क्रोको) डेवलप कर रहा हूं।

उनका मानना है कि जैसे ब्रूसली ने सांप और बिल्ली की मूवमेंट से स्टाइल बनाई थी, वैसे ही वह मगरमच्छों की ताकत, सटीकता और टैक्टिस को फाइटिंग में बदलना चाहता हूं।

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